छत्तीसगढ़ जिसे दक्षिण महाकोशल के नाम से भी जाना जाता था इस राज्य में कलचुरियो ने अपने कलचुरी कालीन शासन व्यवस्था कि सुरुआत कि थी, उसे त्रिपुरी से वंचित होने के बाद स्थानीय अवसकता के अनुसार विकसित किया गया कलचुरी शासको ने कल्याण साय शासन काल के दौरान लिखी गई पुस्तक के अनुसार चिशम ने वर्ष 1868 में कलचुरी शासन व्यवस्था पर एक लेख लिखा |
सामाजिक दशा – Social Condition
छत्तीसगढ़ कल्चुरीकालीन में सभी वर्णनों के लोगों का निवास रहता था, इस काल में ब्राह्मण शस्त्र अस्त्र विद्या में माहिर हुआ करते थे जिसके कारण उन्हें मंत्री पद में नियुक्त भी किया जाता साथ ही राजाओं को युद्ध और शांति के विषय में सलाह भी देते थे इसके अलावा ताम्रपत्र और शिला लेखों में सहायक प्रदान करते कलचुरी काल में ब्राह्मणों को दीवान भी कहा जाता था इस काल में इनका एक मुख्य विशेष स्थान था वैश्य कल्चुरीकालीन काल में व्यापार से संबंधित सभी कार्य को वैश्य के द्वारा देख रेख किया जाता साथ ही ये नगर प्रमुख पूर्व प्रधान हुआ करते इस काल में अन्य वर्ण के देवपाल नामक एक व्यक्ति रहता जो मोची था उसने खल्लारी में विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया
आर्थिक दशा – Economic Condition
कलचुरियों का आय का मुख्य स्रोत कराधन था ये अपने कर के धन से ही अपने आर्थिक दशा को मजबूत रखा करते थे जो इनका प्रमुख महा प्रभातर कहलाता था इन्हें सर्वाधिक आय भूमि कर से प्राप्त होता था कलचुरी काल में आय की प्राप्ति के लिए युगा नामक परमिट सब्जी बेचने के लिए लागू किया जाता था इस में आजीविका का मुख्य साधन कृषि को माना जाता है इस काल में भूमि को नापने के लिए बैलों का सहारा लिया जाता था, एक बैल द्वारा जुताई की जाने वाली खेत 1 हल कहलाता है जो लगभग पाँच एकड़ का होता था कलचुरी राज़ खजाने को भरे रहने के जाजल देव और रत्न देव के विजय ने काफी सहायता प्रदान की है कलचुरी काल के समय गांव या शहर में बाजार होता उन्हें मण्डपीका के नाम से जाना जाता था
सांस्कृतिक दशा – Cultural Condition
कलचुरी काल में धर्म का एक पृथक विशेष भाग होता था इनका प्रमुख महाधर्मकार्णिक या महापुरोहित को माना जाता था कलचुरी काल जो शासक रहते थे वो मुख्यता शिव भगवान को मानते मानते थे इसके अलावा विष्णु,राम,कृष्ण भगवान को भी पूजते थे कलचुरी शासक ने अपने शासनकाल में शिव मंदिरों का निर्माण करवाया गया है कलचुरी शासन में इनकी ईष्ट देवी महामाया के उपासक थे जो शाक्य धर्म का परिचायक है तथा रत्नपुर, मल्हार, सिरपुर, रायपुर, खैरागढ़, राजिम ये सब इनके शिक्षा के प्रसिद्ध केंद्र थे
समाज में स्त्रियों का स्थान – Place of Women in Society
कलचुरी काल के समय में अभिलेखों या शिला लेखों में स्त्रियों का उल्लेख बड़े आदर भाव से किया जाता था जिनमें नोलल्ला अल्हण देवी ओर लाछल्ला देवी उल्लेखनीय हैं कलचुरी शासन के समय युद्ध और शांति से संबंधित महत्वपूर्ण फैसले रानियों के द्वारा भी लिया जाता था कलचुरी काल के समय में बहुविवाह प्रचलित था राजा रत्न देव तृतीय की दो रानियाँ थी रल्ल्हा और पद्य इसका उल्लेख खरौद अभिलेख में पाई गई है कलचुरी शासन के समय सती प्रथा भी प्रचलित थी इसका प्रमाण रत्नपुर के सती स्मारक से अल्हड़ देव की तीन रानियों के सती होने का पता चला है
स्थानीय स्वशासन – Local Self Government
कलचुरी काल में जो स्थानीय स्वशासन संस्था होती थी उसे पंचकूल के नाम से जाना जाता था और इस पंचकूल में केवल 5 से 10 सदस्य हुआ करते थे महत्तर कहा जाता था इनके सदस्य प्रमुख को महत्तम के नाम से जाना जाता था तथा नगर प्रमुख को पुर प्रधान, ग्राम प्रमुख को गौटिया के अधीन ग्रामकुट बोला करते थे
FAQ :-
1. कलचुरी काल स्थानीय स्वशासन संस्था कोकिस नाम से जाना जाता था ?
ANS – पंचकूल
2. कलचुरी काल में शासक सबसे ज्यादा किस भगवान पूजते थे ?
ANS – शिव भगवान को पूजते थे
3. कलचुरी आजीविका का मुख्य साधन किसे मानते है ?
ANS – कृषि को माना जाता है
4. कलचुरी काल के समय देवपाल ने किस मंदिर का मिर्माण कब और कहा करवाया ?
ANS – उसने खल्लारी में विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया ?
5. पंचकुल के निम्न सदस्य को क्या कहते थे?
ANS – महत्तम, ग्रामकूट
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Vishal says
Achha likha hai bhai
Deepak says
Thanks bhai