भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है झाँसी का किला यह किला 1857 की क्रांति के मुख्य केंद्रों में से एक था इस किले का इतिहास बूंदेलो, पेशवा, मराठों, मुगलों और ब्रिटिश से जुड़ा रहा है इसी किले में कुदान स्थल है जहां से रानी लक्ष्मीबाई ने अपने दत्तक पुत्र के साथ घोड़े समेत महल से छलांग लगाई थी झाँसी के किले पर अंग्रेजों ने आठ दिनों तक गोले बरसाए लेकिन वह किले को चातिग्रस्त करने असफल रहे और बाल भी बाका नहीं कर पाए तो आइए दोस्तों आज हम झाँसी का किला और इतिहास, निर्माण को विस्तारपूर्वक जानेंगे
झाँसी किला का निर्माण
सन 1613 में झाँसी के किले का निर्माण ओरछा के राजा बीर सिंह जूदेव ने करवाया था यह किला एक चट्टानी बंगिरा नामक पहाड़ी के ऊपर स्थित है इस किले की ग्रेनाइट दीवारें 16 से 20 फीट मोटी है किले के निर्माण में पत्थर चूना और शीशे का प्रयोग हुआ है किले में प्रवेश के लिए 10 द्वार है इनमें से उन्नाव गेट दत्तया दरवाजा सागर गेट ओरछा गेट बड़गांव गेट लक्ष्मी गेट खंडेराव गेट सैनिक गेट और चांद गेट है
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यह किला 15 एकड़ एरिया में फैला हुआ है रघुनाथ राव नेवलकर ने इस किले में महालक्ष्मी मंदिर और रघुनाथ मंदिर का निर्माण करवाया पुराने समय में इस किले की दीवार झाँसी नगर को पूरी तरफ से घेरती थी इस किले में उल्लेखनीय और दार्शनिक जगह शिव मंदिर प्रवेश द्वार पर गणेश मंदिर और 1857 के विद्रोह में इस्तेमाल की जाने वाली कड़क बिजली तोप है साथ-साथ रानी लक्ष्मीबाई का कूदान स्थल महत्वपूर्ण है
हर्बल गार्डन, टाइगर पार्क
झाँसी में हर्बल गार्डन बहुत ही सुंदर जगह है इस स्थान पर 20 हजार प्रजातियों के अलग-अलग पौधे हैं यह स्थान टाइगर पार्क के रूप में भी जाना जाता है
रानी महल
यह एक शाही महल है इस महल का निर्माण नेवलकर परिवार के रघुनाथ द्वितीय द्वारा किया गया था वास्तुकला की दृष्टि से यह महल एक सपाट छत वाली दो मंजिला इमारत है जिसमें कुआं और एक फवारा है महल में छः हाल समांतर गलियारा और कई छोटे छोटे कमरे इसी महल को रानी लक्ष्मीबाई का निवास स्थान भी बनाया गया था
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रानी लक्ष्मीबाई पार्क
यह पार्क रंग बिरंगे रोशनियों से जगमगाता है और बहुत ही खूबसूरत लगता है
महाराजा गंगाधर राव की छतरी
महाराजा गंगाधर राव की छतरी झाँसी के महत्वपूर्ण स्मारकों में से एक है इस छतरी का निर्माण उनकी पत्नी लक्ष्मी बाई के द्वारा करवाया गया था
महालक्ष्मी मंदिर
झाँसी के किले में स्थित महालक्ष्मी मंदिर का निर्माण रघुनाथ राव नेवलकर द्वारा करवाया गया था शिव मंदिर और गणेश मंदिर झाँसी के किले मे स्थित है
झाँसी की महारानियां
रानी रखमा बाई
रानी रखमा बाई जी यह सूबेदार शिवराज नेवालकर की प्रथम पत्नी थी इनका एक ही पुत्र था जिसका नाम कृष्णराव था ये रानी साखुबाई की सांस थी
रानी पद्माबाई
पद्मा जी सूबेदार नेवालकर की दूसरी पत्नी थी पद्मा जी के दो पुत्र थे रघुनाथराव और गंगाधर ये रानी जानकीबाई , महारानी लक्ष्मीबाई की सांस थी
महारानी लक्ष्मीबाई प्रथम
लक्ष्मीबाई झाँसी के महाराज रामचंद्रराव की प्रथम पत्नी थी यह निपुत्रिक थी महाराज रामचंद्रराव के निधन के बाद 1835 में झाँसी को छोड़कर चली गई थी
रानी साखूबाई
साखुबाई जी झाँसी के प्रथम राजा रामचंद्रराव की मां थी एवम सूबेदार कृष्णराव जी की पत्नी थी
रानी जानकीबाई
रानी जानकी बाई महाराज रघुनाथ राव की तीसरी पत्नी थी ये भी झाँसी के राजगद्दी की दावेदार थी
रानी लच्छोंबाई
यह रानी एक वैश्या थी रघुनाथ राव तृतीय के वक्त झाँसी दरबार में गजराबाई के नृत्यकला दिखाने आती थी महाराज रघुनाथ राव तृतीय इनसे बेहद प्यार करने लगें थे ये प्यार से लच्छों बाई को आफताब बेगम के नाम से पुकारा करते थेराघुनाथ जी ने इस रानी के लिए झाँसी में महल का भी निर्माण करवाए थे आज के समय में इस महल को रघुनाथ राव महल के नाम से जाना जाता है इस महल के दरवाजे पर बेगम ईद के दिनों में चांद का दीदार करती है जिसके कारण इस दरवाजे का नाम चांद का दरवाजा भी कहा जाता है
झाँसी के किले का इतिहास
मुगल बुंदेला युद्ध
झाँसी के किले का निर्माण ओरछा के राजा बीर सिंह जूदेव बुंदेला ने 1613 में करवाया था यह किला बुंदेलो के सबसे मजबूत गढ़ों में से एक था संत 1728 में मुगलों की नजर के किले पर पड़ी और मोहम्मद खान बंगश ने उस दौरान 1728 में महाराज छत्रसाल को पराजित कर किले पर कब्जा करने हेतु आक्रमण किया कि इस युद्ध में महाराजा छत्रसाल का साथ पेशवा बाजीराव ने दिया और दोनों ने मिलकर मुगल सेना को पराजित कर दिया महाराजा छत्रसाल ने युद्ध में जीत होने का आभार व्यक्त करने के लिए अपने राज्य का कुछ हिस्सा पेशवाओं को देने के लिए तैयार हो गए और यह झाँसी का किला पेशवाओं के पास चला गया
सूबेदार नारो शंकर
1742 में नारो शंकर को झाँसी सूबेदार बनाया गया उन्होंने झाँसी के किले को रणनीतिक रूप से विस्तारित किया और भवनों का निर्माण करवाया उनके समय यह किला शंकरगढ़ के किले के रूप में जाना जाने लगा उन्होंने कुल 15 वर्ष तक शासन किया उसके बाद पेशवाओं ने उन्हें वापस बुला लिया इनके बाद माधव गोविंद कारकिंडे बाबूलाल कन्हाई और विश्वास और लक्ष्मण को झाँसी का सूबेदार बनाया गया
सूबेदार रघुनाथ राव नेवलकर
इसके बाद रघुनाथ राव नेवलकर द्वितीय को झाँसी का सूबेदार नियुक्त किया गया उन्होंने झाँसी राज्य के राजस्व अधिकारी वह महालक्ष्मी मंदिर रघुनाथ मंदिर का निर्माण करवाया रघुनाथराव के बाद उनके पोते रामचंद्र राव वह उनके बाद रघुनाथराव द्वितीय की सूबेदारी 1838 तक रही उनके अक्षम प्रशासन ने झांसी को बहुत खराब वित्तीय स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया
राजा गंगाधर राव
रघुनाथराव द्वितीय के बाद ब्रिटिश सरकार ने गंगाधर राव को झाँसी के राजा के रूप में स्वीकार कर लिया सन 1842 में राजा गंगाधर राव ने मणिकर्णिका यानि मनु से शादी की जो बाद में रानी लक्ष्मी बाई के नाम से जानी गई कि रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया जिन्हें दामोदर राओ नाम दिया गया लेकिन इन चार महीने में ही दामोदर राव की मृत्यु हो गई दामोदर राव के बाद राजा गंगाधर राव ने अपने चचेरे भाई के बेटे आनंद राव को गोद ले लिया लेकिन ब्रिटिशों ने गंगाधर राव के बाद आनंद राव के सिंहासन के दावे को खारिज कर दिया गया
और लक्ष्मीबाई को 60 हजार रुपए वार्षिक पेंशन देने के साथ-साथ महल छोड़ने का आदेश दिया कि रानी लक्ष्मीबाई ने झलकारी बाई के साथ मिलकर मजबूत महिला सेना बनाई 1857 के सितंबर तथा अक्टूबर के महीने में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया रानी लक्ष्मीबाई ने इन आक्रमणों को सफलतापूर्वक विफल कर दिया लेकिन 2858 कि जनवरी माह से ही ब्रिटिश सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया
मार्च 1858 के आसपास केप्टन हिरूस ने कंपनी बलों के साथ किले को चारों तरफ से घेर लिया ऐसा कहा जाता है कि ब्रिटिशों ने किले पर आठ दिनों तक लगातार गोले बरसाए लेकिन व किले का कुछ नही बिगाड़ पाए आखिरकार चार अप्रैल 1858 में कैप्टन हीरूस ने अपनी कंपनी बलों के साथ किले पर कब्जा कर लिया रानी लक्ष्मीबाई अपने बेटे के साथ महल से घोड़े समेत छलांग लगाई और वह बचकर तात्या टोपे से जा मिले 1858 को ग्वालियर के पास कोटा-की-सराय में ब्रिटिश सेना से लढ़ते-लढ़ते रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुई झलकारी बाई भी रानी लक्ष्मी बाई को बचाते-बचाते अमर शहीद हो गई थी सन 1861 में ब्रिटिश सरकार ने झाँसी के किले को ग्वालियर के महाराज जियाजी राव सिंधिया के हवाले कर दिया लेकिन बाद में 1868 में ही ग्वालियर से झाँसी वापस ले लिया गया
FAQ – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
रानी लक्ष्मीबाई के असली बेटे का क्या नाम था ?
इनके बेटे का नाम दामोदर राओ था तथा जन्म के चार महीने बाद ही दामोदर की मृत्यु हो गयी
रानी लक्ष्मीबाई के कितने घोड़े थे और क्या नाम था ?
लक्ष्मीबाई के पास बादल, पवन, सारंगी नाम के तीन घोड़े थे
झाँसी का किला कितना बड़ा है ?
यह किला 15 एकड़ एरिया में फैला हुआ है
झाँसी के किले का निर्माण किसने करवाया था ?
सन 1613 में झाँसी के किले का निर्माण ओरछा के राजा बीर सिंह जूदेव ने करवाया था
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